दिल्ली: बारिश ने खोली तैयारियों की पोल - क्या सीखा हमने?
परिचय: जब आसमान रो पड़ा, तो ज़मीन डूबने लगी
दिल्ली। ये नाम सुनते ही दिमाग में आती है राजनीति की गहमागहमी, ऊंची इमारतें और भागती-दौड़ती ज़िंदगी। लेकिन हर साल जब मानसून की बूंदें इस महानगर पर बरसती हैं, तो एक दूसरी तस्वीर सामने आ जाती है। बरसात का मौसम दिल्ली वासियों के लिए राहत और रोमांच तो लाता है, लेकिन साथ ही लाता है जलभराव, ट्रैफिक जाम और प्रशासन की तैयारियों पर बड़े सवाल। पिछले कुछ सालों में देखा गया है कि अक्सर कुछ ही घंटों की तेज़ बारिश पूरी दिल्ली को ठप कर देती है, यहां तक कि यमुना नदी का जलस्तर खतरे के निशान को पार कर जाता है। सवाल उठता है: क्या वाकई दिल्ली बारिश के मौसम के लिए तैयार है? या हर साल बारिश सिर्फ हमारी तैयारियों की कमियों की पोल ही खोलकर रह जाती है? आइए, समझते हैं।
दिल्ली की मानसून मुसीबतें: सिर्फ बारिश नहीं, बाढ़ और जाम का कॉकटेल
हर साल की तरह इस बार भी मानसून ने दिल्ली में दस्तक दी तो अपने साथ लाई कुछ परिचित समस्याएं:
शहर डूब गया पानी में: मुख्य मार्गों से लेकर आवासीय कॉलोनियों तक, जलभराव एक आम दृश्य बन जाता है। कमज़ोर नाली व्यवस्था और अतिक्रमण इसकी बड़ी वजहें हैं।
यमुना का कहर: हाल के वर्षों में यमुना नदी का जलस्तर लगातार खतरे के निशान से ऊपर जाता देखा गया है, जिससे निचले इलाकों में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो जाते हैं। 2023 तो विशेष रूप से बुरा रहा।
ट्रैफिक का सैलाब: जलभराव के कारण मुख्य सड़कें और अंडरपास बंद हो जाते हैं, जिससे पूरे शहर में भीषण ट्रैफिक जाम लग जाता है। घंटों सड़क पर फंसे रहना लोगों की मजबूरी बन जाता है।
बिजली गुल और अन्य परेशानियाँ: बारिश के साथ अक्सर बिजली कटौती, पानी की सप्लाई में दिक्कत, और मच्छरों के पनपने से बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है।
"एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया"? जवाबदेही तय करने की चुनौती
जब भी बारिश से हालात बिगड़ते हैं, सबसे बड़ा सवाल यही उठता है: आखिर ज़िम्मेदार कौन? प्रशासनिक ढांचा इतना जटिल है कि दोषारोपण का खेल शुरू हो जाता है:
म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन बनाम पीडब्ल्यूडी बनाम डीडीए: जल निकासी, सड़कें, नाले - अलग-अलग एजेंसियों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। एक दूसरे पर दोष डालना आसान हो जाता है।
केंद्र बनाम राज्य: दिल्ली की विशेष प्रशासनिक स्थिति के कारण केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच समन्वय की कमी अक्सर समस्याओं को बढ़ा देती है।
नागरिकों की भूमिका भी कम नहीं: प्लास्टिक कचरा नालियों में फेंकना, अवैध निर्माण जो नालों को ब्लॉक करते हैं - ये भी बड़ी समस्याएं हैं। यहां जवाबदेही पूरी तरह प्रशासन की ही नहीं, नागरिकों की भी बनती है।
सच तो यह है कि "दोष किस पर" का सवाल तब तक अधूरा है जब तक "समाधान क्या" पर ध्यान न दिया जाए। सभी एजेंसियों और नागरिकों को मिलकर काम करने की ज़रूरत है।
बारिश ने खोली पोल: कहाँ कमज़ोर पड़ी तैयारियाँ?
पिछली भारी बारिश की घटनाओं ने साफ कर दिया कि हमारी तैयारियाँ अक्सर कागज़ी ही रह जाती हैं या फिर पर्याप्त नहीं होतीं:
नालों की सफाई: देर से और अधूरी: हर साल नालों की सफाई का काम मानसून आने के ठीक पहले शुरू होता है और अक्सर पूरा नहीं हो पाता। गाद और कचरा हटाने का काम ठीक से नहीं हो पाता।
डी-सिल्टिंग और ड्रेनेज सिस्टम: पुराना और अपर्याप्त: शहर का जल निकासी तंत्र दिल्ली की बढ़ती आबादी और कंक्रीट के जंगल के सामने पुराना पड़ चुका है। इसे अपग्रेड करने की तत्काल ज़रूरत है।
अतिक्रमण: नालों का गला घोंटना: नदियों और नालों के किनारों पर अवैध अतिक्रमण पानी के प्राकृतिक बहाव को रोक देता है, जिससे बाढ़ की स्थिति बनती है। इन्हें हटाना एक बड़ी चुनौती है।
आपदा प्रबंधन: रिएक्टिव, प्रोएक्टिव नहीं: अक्सर कार्रवाई तब होती है जब समस्या आ चुकी होती है। बाढ़ पूर्वानुमान, त्वरित निकासी योजनाएं और संसाधनों का प्रभावी तैनाती में सुधार की गुंजाइश है।
जन जागरूकता की कमी: लोगों को प्लास्टिक कचरा न फेंकने, बारिश के दौरान सुरक्षित स्थानों पर रहने, और आपातकालीन नंबरों की जानकारी देने की नियमित ज़रूरत है।
आगे का रास्ता: कैसे बचें हर साल की यही कहानी दोहराने से?
दिल्ली को बारिश के मौसम के लिए वाकई मज़बूत बनाना है, तो कुछ ठोस कदम उठाने होंगे:
समय से पहले और व्यापक तैयारी: नालों की सफाई और डी-सिल्टिंग का काम मानसून से काफी पहले पूरा कर लिया जाना चाहिए। सिर्फ मुख्य नालों पर ही नहीं, छोटी नालियों पर भी ध्यान देना होगा।
आधुनिक और क्षमतावान ड्रेनेज सिस्टम: शहर की बढ़ती ज़रूरतों को ध्यान में रखकर जल निकासी व्यवस्था का पूरा नवीनीकरण और विस्तार करना होगा। सस्टेनेबल अर्बन ड्रेनेज सिस्टम (SUDS) जैसे तरीके अपनाए जा सकते हैं।
अतिक्रमण हटाने की मुहिम: नदियों, नालों और जलमार्गों पर कब्ज़ा करने वाले अवैध निर्माणों को सख्ती से हटाना होगा। यह राजनीतिक इच्छाशक्ति की मांग करता है।
बेहतर समन्वय और जवाबदेही: सभी संबंधित एजेंसियों (एमसीडी, पीडब्ल्यूडी, डीडीए, डीजेबी, आपदा प्रबंधन प्राधिकरण) के बीच तालमेल बढ़ाना और काम की स्पष्ट जवाबदेही तय करना ज़रूरी है।
रेनवाटर हार्वेस्टिंग (वर्षा जल संचयन) को बढ़ावा: ज़मीन के भीतर पानी उतारने और जलभराव कम करने के लिए घरों, सोसाइटियों और सार्वजनिक भवनों में RWH सिस्टम अनिवार्य और प्रभावी बनाने होंगे।
पब्लिक अवेयरनेस और कम्युनिटी इन्वॉल्वमेंट: लोगों को स्वच्छता बनाए रखने, कचरा प्रबंधन और आपात स्थिति में क्या करें, इसके लिए निरंतर जागरूक करना होगा। स्थानीय स्तर पर कम्युनिटी की भागीदारी बढ़ानी होगी।
निष्कर्ष: मौसम की मार से बचाव, सामूहिक प्रयास से ही संभव
दिल्ली की बारिश की समस्या सिर्फ प्राकृतिक नहीं है, यह मानव निर्मित भी है। हर साल बारिश हमारी तैयारियों की पोल खोलकर चली जाती है। यह सिर्फ प्रशासन की नाकामी नहीं, बल्कि सामूहिक ज़िम्मेदारी की कमी को भी दर्शाती है। बारिश के मौसम में दिल्ली को जलमग्न होने से बचाने के लिए जरूरी है समय रहते ठोस योजना, उसका कड़ाई से क्रियान्वयन, और सबसे बढ़कर, सभी हितधारकों का मिलकर प्रयास।
अगले मानसून से पहले अगर हमने सबक लेकर सही कदम उठाए, तो शायद बारिश सिर्फ ठंडक और खुशहाली लाएगी, न कि जलभराव और तबाही की कहानी दोहराएगी। दिल्ली वासियों का यही सपना साकार हो, यही कामना है।
क्या आपको लगता है कि अगले मानसून में दिल्ली बेहतर तरीके से तैयार होगी? अपने विचार कमेंट में ज़रूर साझा करें!
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