भारत की अंतरिक्ष उपलब्धि: ISRO तैयार कर रहा है SPADEX-2 मिशन, अण्डाकार कक्षा में उपग्रहों को डॉक करेगा!
परिचय: एक नई ऊंचाई की तरफ कदम
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) एक बार फिर दुनिया को अपनी तकनीकी क्षमता का लोहा मनवाने को तैयार है! चंद्रयान-3 और मंगलयान जैसे ऐतिहासिक मिशनों के बाद अब ISRO का नया लक्ष्य है – SPADEX-2 मिशन। यह भारत का पहला ऐसा मिशन होगा जहां दो उपग्रहों को अंतरिक्ष में, खासकर अण्डाकार कक्षा (Elliptical Orbit) में, स्वचालित रूप से डॉक (जोड़ा) किया जाएगा। यह तकनीक भविष्य में अंतरिक्ष स्टेशन बनाने, उपग्रहों की मरम्मत करने या ईंधन भरने जैसे जटिल ऑपरेशन्स की नींव रखेगी। आइए, जानते हैं इस क्रांतिकारी मिशन के बारे में सबकुछ।SPADEX-2 मिशन क्या है? सरल भाषा में समझें
SPADEX का मतलब है SPAce Docking EXperiment। यह एक प्रायोगिक मिशन है जिसका मुख्य लक्ष्य है:
दो स्वतंत्र उपग्रहों को अंतरिक्ष में एक-दूसरे से स्वचालित रूप से जोड़ना (डॉकिंग)।
यह डॉकिंग अण्डाकार कक्षा में की जाएगी, जो एक गोलाकार कक्षा (Circular Orbit) से कहीं ज्यादा जटिल होती है।
मिशन में दो उपग्रह शामिल होंगे: एक चेजर (Chaser) उपग्रह जो दूसरे टार्गेट (Target) उपग्रह का पीछा करेगा और उससे जुड़ेगा।
यह तकनीक भविष्य के मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम 'गगनयान' के लिए भी महत्वपूर्ण है।
SPADEX-2 मिशन के मुख्य उद्देश्य: सिर्फ डॉकिंग नहीं है लक्ष्य
ISRO इस मिशन के जरिए कई बड़े लक्ष्यों को हासिल करना चाहता है:
स्वायत्त डॉकिंग तकनीक का प्रदर्शन: पूरी तरह से स्वचालित सिस्टम की मदद से बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के डॉकिंग करना।
अण्डाकार कक्षा की चुनौती को काबू करना: गोलाकार कक्षा की तुलना में अण्डाकार कक्षा में गुरुत्वाकर्षण और गति में लगातार बदलाव होता है, जिससे डॉकिंग बेहद मुश्किल हो जाती है। इस पर भारत की महारत साबित करना।
रेंडेवज़स और प्रॉक्सिमिटी ऑपरेशंस में महारत: दो वस्तुओं को अंतरिक्ष में सटीकता से निकट लाना और उन्हें नियंत्रित करना।
भविष्य के मिशनों की नींव रखना: इस सफलता से अंतरिक्ष में उपग्रहों की सर्विसिंग (मरम्मत, ईंधन भरना), अंतरिक्ष कचरा प्रबंधन और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन जैसी महत्वाकांक्षी परियोजनाएं साकार हो सकेंगी।
अण्डाकार कक्षा में डॉकिंग: क्यों है यह इतना मुश्किल?
गोलाकार कक्षा की तुलना में अण्डाकार कक्षा में डॉकिंग करना कई गुना जटिल है। इसकी वजहें हैं:
गति में भारी उतार-चढ़ाव: उपग्रह कक्षा के नजदीकी बिंदु (पेरीजी) पर सबसे तेज और दूरस्थ बिंदु (एपोजी) पर सबसे धीमी गति से चलता है। इससे चेजर उपग्रह के लिए टार्गेट के साथ गति मिलाना बेहद कठिन हो जाता है।
जटिल नेविगेशन और गाइडेंस: गति और दिशा में लगातार बदलाव के कारण दोनों उपग्रहों की सटीक स्थिति और गति का पता लगाना और उन्हें नियंत्रित करना काफी चुनौतीपूर्ण है।
ईंधन प्रबंधन: गति में बार-बार बदलाव के लिए ज्यादा मैन्यूवरिंग की जरूरत पड़ती है, जिसका मतलब है ईंधन का सावधानीपूर्वक प्रबंधन।
जोखिम का स्तर: डॉकिंग के दौरान टक्कर का खतरा अधिक होता है, क्योंकि दोनों वस्तुएं एक-दूसरे के सापेक्ष तेजी से गति कर रही होती हैं।
SPADEX-2 डॉकिंग के लिए "पात्रता" या आवश्यक शर्तें क्या हैं?
यहां "पात्रता" से तात्पर्य उन महत्वपूर्ण तकनीकी शर्तों और क्षमताओं से है जिन्हें दोनों उपग्रहों (चेजर और टार्गेट) को डॉकिंग के लिए पूरा करना होगा:
उन्नत रिलेटिव नेविगेशन सिस्टम: दोनों उपग्रहों को एक-दूसरे की दूरी, सापेक्ष गति और अभिविन्यास (Orientation) को अत्यंत सटीकता से मापने में सक्षम होना चाहिए (रेडार, लेजर, ऑप्टिकल सेंसर का उपयोग करके)।
सटीक गति नियंत्रण (प्रोपल्शन सिस्टम): चेजर उपग्रह को बहुत ही छोटे और नियंत्रित थ्रस्ट (धक्का) देने की क्षमता चाहिए ताकि वह टार्गेट के साथ अपनी स्थिति और गति को बिल्कुल मिला सके।
रॉबस्ट गाइडेंस, नेविगेशन एंड कंट्रोल (GNC) अल्गोरिदम: ये सॉफ्टवेयर एल्गोरिदम ही वास्तविक समय में सेंसर डेटा का विश्लेषण करके उपग्रह को सही दिशा में मैन्यूवर करने के निर्देश देते हैं। इनका बेहद मजबूत और विश्वसनीय होना जरूरी है।
स्वचालित डॉकिंग मैकेनिज्म: दोनों उपग्रहों पर ऐसी भौतिक संरचना (डॉकिंग पोर्ट/मैकेनिज्म) होनी चाहिए जो सुरक्षित और स्थिर तरीके से जुड़ सके और झटकों को सह सके।
उन्नत संचार प्रणाली: दोनों उपग्रहों के बीच और उनका जमीन स्टेशन के साथ निर्बाध संचार बना रहना चाहिए।
स्वायत्तता: पृथ्वी से संचार में होने वाली देरी के कारण, डॉकिंग के महत्वपूर्ण चरणों में उपग्रहों को स्वयं निर्णय लेने में सक्षम (Autonomous) होना पड़ेगा।
तकनीकी पहलू: कैसे काम करेगा SPADEX-2?
उपग्रह युगल: मिशन में दो विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए छोटे उपग्रह होंगे, जिन्हें एक साथ या थोड़े अंतराल पर लॉन्च किया जा सकता है।
फेजबद्ध अप्रोच: डॉकिंग एक ही चरण में नहीं होगी। इसमें कई चरण शामिल होंगे - दूर से रेंडेवज़स, करीबी अप्रोच, फाइनल अप्रोच और अंततः भौतिक कपलिंग (जुड़ना)।
अत्याधुनिक सेंसर: लेजर रेंजफाइंडर, ऑप्टिकल कैमरे, रेडियो फ्रीक्वेंसी (RF) सेंसर जैसी तकनीकों का उपयोग सटीक स्थिति जानने के लिए किया जाएगा।
थ्रस्टर्स: प्रेशराइज्ड गैस या इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन (जैसे थ्रस्टर्स) का उपयोग अत्यंत सूक्ष्म और सटीक मैन्यूवर के लिए किया जाएगा।
भूमि आधारित नियंत्रण: हालांकि डॉकिंग स्वचालित होगी, लेकिन ISRO के वैज्ञानिक पूरी प्रक्रिया पर नजर रखेंगे और आवश्यकता पड़ने पर हस्तक्षेप कर सकेंगे।
क्यों महत्वपूर्ण है SPADEX-2 मिशन?
रणनीतिक क्षमता: अंतरिक्ष में स्वायत्त डॉकिंग एक रणनीतिक क्षमता है, जिस पर अभी कुछ ही देशों का अधिकार है। भारत इस क्लब में शामिल हो जाएगा।
अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था को बढ़ावा: उपग्रहों की मरम्मत, जीवन बढ़ाना या ईंधन भरने की क्षमता से अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था (Space Economy) को बड़ा प्रोत्साहन मिलेगा।
गगनयान की राह आसान: भारत के मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम 'गगनयान' के लिए मॉड्यूल्स को जोड़ने या अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित स्थानांतरित करने के लिए यह तकनीक जरूरी है।
अंतरिक्ष कचरे का समाधान: भविष्य में इस तकनीक का उपयोग खतरनाक अंतरिक्ष कचरे को नष्ट करने या हटाने के लिए भी किया जा सकता है।
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