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उपहार सिनेमा अग्निकांड

 



उपहार सिनेमा अग्निकांड: 28 साल बाद भी जलता है दर्द और ज़ख्मों का सवाल

परिचय: एक काला दिन

13 जून 1997... दिल्ली के हंसराज बाग इलाके में स्थित उपहार सिनेमा घर में दोपहर का वक्त था। सिनेमा हॉल में जेपी दत्ता की फिल्म "बॉर्डर" का शो चल रहा था। तभी अचानक आग लगने की खबर ने सबकी सांसें थाम दीं। यह कोई सामान्य आग नहीं थी, बल्कि भारत के इतिहास में दर्ज सबसे भयावह सिनेमा हॉल आगजनी की घटना बन गई। आज, इस भीषण त्रासदी के 28 वर्ष पूरे होने पर भी, पीड़ित परिजनों का दर्द और न्याय की लड़ाई का सफर थमा नहीं है।



उपहार अग्निकांड: क्या हुआ था उस दिन?

  • समय और स्थान: 13 जून 1997, दोपहर लगभग 5 बजे, दिल्ली के उपहार सिनेमा हॉल में।

  • आग की शुरुआत: सिनेमा हॉल के बेसमेंट में लगे ट्रांसफॉर्मर में शॉर्ट सर्किट से आग लगी, जो तेजी से फैल गई।

  • जहरीला धुआं: आग से निकला घना और जहरीला धुआं सबसे बड़ा हत्यारा बना। यह धुआं मुख्य ऑडिटोरियम और खासकर वेंटिलेशन सिस्टम के जरिए ऊपर फैल गया।

  • निकासी में बाधाएँ:

    • आपातकालीन निकास द्वार अवरुद्ध या बंद पाए गए।

    • कई सीटों के नीचे अवैध रूप से जमा सामान भागने के रास्ते रोक रहा था।

    • हॉल में अधिक क्षमता से ज्यादा दर्शक मौजूद थे।

  • भीषण परिणाम: इस घटना में 59 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई (जिनमें कई बच्चे और महिलाएं शामिल थीं) और 100 से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हुए। अधिकांश मौतें दम घुटने या कुचले जाने से हुईं।

त्रासदी के जिम्मेदार: कारण और लापरवाही

जांचों और मुकदमों ने इस त्रासदी के पीछे गंभीर लापरवाही और नियमों की धज्जियां उड़ाने का पता लगाया:

  • असुरक्षित इलेक्ट्रिकल सिस्टम: ट्रांसफॉर्मर में खराबी और बिना सुरक्षा उपायों के उसका संचालन।

  • आपातकाल निकास का अभाव: कानूनी रूप से जरूरी निकास द्वारों का न होना या उनका बंद होना।

  • फायर सेफ्टी नियमों की अवहेलना: हॉल में फायर एक्सटिंग्विशर्स और अलार्म सिस्टम का प्रभावी होना सुनिश्चित नहीं था।

  • अतिभीड़: हॉल की अनुमत क्षमता से अधिक टिकट बेचना।

  • उपहार सिनेमा के मालिक (अंसल बंधु): उन पर सुरक्षा उपायों में कोताही बरतने और लाभ के लिए नियम तोड़ने के गंभीर आरोप लगे।

पीड़ित परिजनों का अथक संघर्ष: एवीयूटी और न्याय की लड़ाई

इस त्रासदी ने जहां कई परिवारों को तबाह कर दिया, वहीं उन्होंने एकजुट होकर न्याय की लड़ाई लड़ने का फैसला किया:

  • एसोसिएशन ऑफ द विक्टिम्स ऑफ उपहार ट्रेजेडी (AVUT): पीड़ितों के परिजनों, विशेषकर नीलम और शीशा कृष्णा के नेतृत्व में गठित इस संगठन ने त्रासदी के बाद के सालों में न्याय और सुरक्षा मानकों के लिए आवाज़ उठाई है।

  • लंबा कानूनी संघर्ष: मामला निचली अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गया। अंसल ब्रदर्स समेत दोषियों को सजा हुई, हालांकि सजा की अवधि और उसके क्रियान्वयन को लेकर पीड़ित परिवारों को निराशा और अपर्याप्त न्याय का अहसास हुआ।

  • मुआवजे और जवाबदेही: मुआवजे की रकम और दोषियों की संपत्ति की नीलामी के मुद्दे भी लंबे विवाद और कानूनी लड़ाई का हिस्सा रहे।

28 साल बाद: स्मृति, श्रद्धांजलि और अधूरे सवाल

  • वार्षिक श्रद्धांजलि: हर साल 13 जून को, पीड़ित परिजन और एवीयूटी के सदस्य उपहार सिनेमा के स्थल पर इकट्ठा होते हैं। वे दिवंगत आत्माओं को श्रद्धांजलि देते हैं, मोमबत्तियां जलाते हैं और न्याय व सुरक्षा में सुधार की मांग को दोहराते हैं।

  • सार्वजनिक सुरक्षा की सीख: उपहार कांड ने भारत में सार्वजनिक स्थलों, विशेषकर सिनेमा हॉलों, की फायर सेफ्टी मानकों पर गंभीर सवाल खड़े किए। इसके बाद कई राज्यों ने नियमों को कड़ा किया, लेकिन उनका सख्ती से पालन अभी भी एक बड़ा चुनौतीपूर्ण मुद्दा बना हुआ है।

  • अधूरा दर्द: 28 साल बाद भी, जिन परिवारों ने अपनों को खोया, उनके लिए दर्द उतना ही ताजा है। न्यायिक प्रक्रिया की लंबाई और परिणामों ने उनके घावों पर मरहम नहीं लगाया है।

निष्कर्ष: एक कड़वी याद और सतर्कता की पुकार

उपहार सिनेमा अग्निकांड सिर्फ एक आँकड़ा नहीं, बल्कि 59 निर्दोष जिंदगियों का अपूरणीय नुकसान है। यह उन परिवारों के अथक संघर्ष की कहानी है जो न्याय की आस लिए हुए हैं। 28 साल बीत जाने के बाद भी, यह घटना हमें लापरवाही की घातक कीमत और सार्वजनिक सुरक्षा में सतर्कता व जवाबदेही की अनिवार्यता की ओर इशारा करती है। पीड़ित परिजनों का दर्द याद दिलाता है कि "कभी न भूलने वाली" इस त्रासदी से सीख लेकर ही हम भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोक सकते हैं। आज, हम उन निर्दोष जानों को श्रद्धांजलि देते हैं और उनके परिवारों के साहस व हौसले को सलाम करते हैं। उनकी लड़ाई सिर्फ न्याय के लिए नहीं, बल्कि सभी के लिए सुरक्षित माहौल बनाने की दिशा में एक प्रेरणा है।

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